न जाने कैसे निगाहों ने कह दिया उनसे जो बात अपनी ज़बाँ से अदा न हो पाई।।साहनी
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Showing posts from July, 2025
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धर्मचर बन ज़िन्दगी के हर चरण को पार करना ज़िन्दगी से प्यार करना रूठना मनुहार करना प्रीति करना रार करना मृत्यु तब स्वीकार करना..... धर्म हित काया मिली है ज़िन्दगी सहधर्मिणी है साधना में सहचरी है अनुचरी है रक्षिणी है प्राण प्रिय तन मन वचन से पूर्ण अंगीकार करना डूब कर अभिसार करना मृत्यु तब स्वीकार करना...... जन्म से तो शुद्र है तन, है तरूणता वैश्य होना क्षात्र है परिवार पालन धर्म पालन विप्र होना धर्म का आचार करना धर्म के अनुसार करना मृत्यु का सत्कार करना मृत्यु तब स्वीकार करना......... सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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जिसे देख कर यती मुनी तक सूध बुध सब बिसरा देते हैं जिसे देख कर सुर नर किन्नर सारे होश गंवा देते हैं दानव देव तपस्वी सबका जो विचलित करता है तन मन नर नारायण सबके दिल पर निर्विवाद है जिसका शासन मायापति मनुसुत मायावी सब जिसका अनुचर दिखता है। वह भोला बन पूछ रहा है क्या कवि सच को सच लिखता है।। सुरेश साहनी, कानपुर
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सुबह से रात तक चलते रहो बस। रवायत मान कर ढलते रहो बस।। ज़माने को कहाँ परवाह कुछ भी नहीं खलता तुम्हीं खलते रहो बस।। गुहर पाना है तो गहरे में जाओ वगरना हाथ ही मलते रहो बस।। लहू आंखों से उगलेगा शरारे नहीं तो ख़ुद को ही छलते रहो बस।। शज़र बनते हैं दाने खाक़ होकर ख़ुदी रखना है तो गलते रहो बस।। अँधेरा भी मिटेगा साहनी जी चिराग़ों की तरह जलते रहो बस।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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अपना कोई गाँव नहीं है। बनजारा हूँ ठाँव नहीं है।। जैसा हूँ वैसा दिखता हूँ ज़्यादा बोल बनाव नहीं है।। क्यों उनसे दुर्भाव रखूँ मैं बेशक़ उधर लगाव नहीं है।। पैरों में छाले हैं लेकिन मन पर कोई घाव नहीं है।। मन क्रम वचन एक है अपना बातों में बिखराव नहीं है।। जीवन है इक बहती नदिया पोखर का ठहराव नहीं है।। राम सुरेश न मिल पाएंगे अगर भक्ति में भाव नहीं है।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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दिल के जख्मों को सजाना खल गया। उनको मेरा मुस्कुराना खल गया।। कल जिन्हें था उज़्र मेरे मौन पर आज हाले-दिल सुनाना खल गया।। उनसे मिलने की खुशी में रो पड़ा पर उन्हें आँसू बहाना खल गया।। उनकी यादेँ, उनके ग़म ,तन्हाईयां उनको मेरा ये खज़ाना खल गया।। चाहता है ये शहर हम छोड़ दें क्या उसे मेरा ठिकाना खल गया।। इनको मेरी चंद खुशियां खल गयीं उनको मेरा आबोदाना खल गया।। आख़िरश उनको ज़नाज़े में मेरे इतने सारे लोग आना खल गया।। सुरेश साहनी ,कानपुर
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आशना अपनी रही है ज़िन्दगी। हैफ़ फिर भी अजनबी है ज़िन्दगी।। घुल रहे हैं ज़िन्दगी में सुर मधुर कैसे कह दें बेसुरी है ज़िन्दगी।। राब्ता जिनसे न था अपना कोई आज वो लगने लगी है ज़िन्दगी।। और फिर नाशाद रहती कब तलक आज हल्का सा हँसी है ज़िन्दगी।। आज तक गोया थी उनकी मुन्तज़िर साथ पा कर चल पड़ी है ज़िन्दगी।। सिर हथेली पर लिये फिरते हैं हम उस गली में मौत भी है ज़िन्दगी।। सिर्फ़ वो हैं बात ऐसी भी नहीं उनकी ख़ातिर साहनी है ज़िन्दगी।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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सम्हल भी रहे हैं मचल भी रहे हैं। कदम डगमगाते हैं चल भी रहे हैं।। ज़फ़ा छोड़ कर भागना चाहती है वफ़ा वाले रहबर उछल भी रहे हैं।। कोई तूर ग़ैरत का कैसे दबेगा शुआओं के चश्मे उबल भी रहे हैं।। यक़ीनन यहाँ ग़र्क़ होगा अंधेरा मशालों के लश्कर निकल भी रहे हैं।। खरामा खरामा बदलना है मंज़र के हालात करवट बदल भी रहे हैं।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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हुस्न को यार मिल ही जायेंगे। दिल के बीमार मिल ही जायेंगे।। जब उसे सादगी पसंद नहीं कुछ रियाकार मिल ही जायेंगे।। इश्क़ अव्वल गुनाह कहने को लोग दो चार मिल ही जायेंगे।। आज सोचा है बेच दें ख़ुद को कुछ खरीदार मिल ही जायेंगे।। घर से निकलो तो इश्क़ की जानिब राह में दार मिल ही जायेंगे।। हर सहाफ़ी क़लम न बेचेगा चन्द् खुद्दार मिल ही जायेंगे।। साहनी की ग़ज़ल में भी लायक कुछ तो अशआर मिल ही जायेंगे।।
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अभी जाने का मौसम तो नहीं था। कहर ढाने का मौसम तो नहीं था।। ये बेमौसम की बारिश और बिजली घटा छाने का मौसम तो नहीं था।। चलो चलते हैं मयकश उस गली में यूँ मैखाने का मौसम तो नहीं था।। घिरे घन श्याम बिन राधा उदासी ये बरसाने का मौसम तो नहीं था।। तमन्नाओं के दिल लरजे हुए हैं ये बल खाने का मौसम तो नहीं था।। बहुत अच्छा लगा तुम याद आये भुला पाने का मौसम तो नहीं था।। जनाजे को मेरे क्यों कर सजाया तेरे आने का मौसम तो नहीं था।। सुरेश साहनी,कानपुर