उन्हें पता है हम ज़िंदा हैं लोकतन्त्र मर गया अगर क्या...... जब चुनाव जितने चुनाव तुम करवा डालो हमें फ़र्क़ क्या हम बैठे हैं अभी स्वर्ग में बाद मृत्यु के स्वर्ग नर्क क्या पाप पुण्य हैं विषय तुम्हारे फल प्रतिफल का हमको डर क्या....... हम अर्जुन हैं हम भारत हैं हम सूरत हैं हम काशी हैं अधोमुखी है गति विपक्ष की हम ईडी हैं अविनाशी हैं हम क्या हैं यह हमें पता है तुम क्या हो हैं तुम्हें खबर क्या.. ... कल परिणाम वही आएगा जो कल हम लाना चाहेंगे पा लेंगे हम सहज तंत्र से जो फल हम पाना चाहेंगे जनता कहाँ जनार्दन होगी जनता हमसे बढ़कर है क्या....... सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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Showing posts from May, 2025
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दिल बहला कर चल देते हो। बात बना कर चल देते हो।। दिल का दर्द कहें क्या तुमसे तुम कतरा कर चल देते हो।। दिन भर यहाँ वहाँ भटकोगे रात बिताकर चल देते हो ।। हम खोये खोये रहते हैं तुम क्या पाकर चल देते हो।। क्यों उम्मीद जगाते हो जब हाथ बढ़ा कर चल देते हो ।। ख़ाक मुहब्बत को समझे हो आग लगा कर चल देते हो।। अब ख़्वाबों में यूँ मत आना नींद उड़ा कर चल देते हो ।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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कौन कहता है हुनर बिकता है। जब भी बिकता है बशर बिकता है।। कब दवा खाने शिफा देते हैं हर कहीं मौत का डर बिकता है।। है सियासत की गिरावट बेशक़ गाँव बिकता है शहर बिकता है।। पहले बिकते थे ज़मी और मकां अब सहन बिकते हैं घर बिकता है।। तब धरोहर थे गली के बरगद आज आँगन का शज़र बिकता है।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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मैं उनको जाना पहचाना लगता हूँ। क्या मैं सचमुच मेरे जैसा लगता हूँ।। मेरे जैसे कितने चेहरे है मुझमें क्या जैसा हूँ कुछ कुछ वैसा लगता हूँ।। किस को ढूंढ़ रहा हूँ मैं आईने में क्या मैं ख़ुद में खोया खोया लगता हूँ।। तुम अपना कहते हो हैरत होती है मैं मुझको ही आज पराया लगता हूँ।। घर है रिश्ते-नाते हैं याराने हैं फिर क्यों इतना तन्हा तन्हा लगता हूँ।। मेरा पता ठिकाना दुनिया जाने हैं मैं ही मुझको भूला भटका लगता हूँ।। जब सुरेश से सारी दुनिया जलती है हैरत है मैं तुमको अच्छा लगता हूँ।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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कभी तो धूप के साये से निकलो। अंधेरों से न कतराए से निकलो।। तुम्हारी चाल है नागिन सरीखी चलो बेशक़ न बलखाये से निकलो।। चलो सड़कों पे तो बिंदास जानम न झिझको और न घबराए से निकलो।। चलो हमपे खफ़ा हो लो चलेगा मगर ख़ुद पर न झुँझलाये से निकलो।। फ़साना रात का सब जान जायें कम अज कम यूँ न अलसाये से निकलो।। लगे है तुम से ताज़ादम ज़माना जहां तक हो न कुम्हलाये से निकलो।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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हद है तुम स्कूल गये हो। और सबक भी भूल गये हो।। इश्क़ नहीं हो पाया अब तक फिर तो वहां फ़ुज़ूल गये हो।। प्रेम नदी में उतरे भी हो या बस उसके कूल गये हो।। काँधे पर सिर धरवाया है या बाहों में झूल गये हो।। दिल् की गद्दी तब मिलती है यदि होकर माज़ूल गये हो।। दिल की राह मिलेगी कैसे कब होकर मकतूल गये हो।। कल सुरेश दुनिया थूकेगी लिख जो ऊलजुलूल गये हो।। फ़ुज़ूल/व्यर्थ, कूल/किनारा माज़ूल/विनम्र,पदच्युत, मक़तूल/जिसका क़त्ल हुआ हो ऊलजुलूल/व्यर्थ, निरर्थक सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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आज के युग की सभी सम्वेदनाएँ मर चुकी हैं। या कि केवल युग बचा है चेतनाएं मर चुकी हैं।। लोग जिंदा हैं कि मुर्दा कुछ पता चलता नहीं है यातना इतनी सही है वेदनायें मर चुकी हैं।। जी रहे हैं दास बनकर अपनी आदत में है वरना अर्गलायें सड़ चुकी हैं, श्रृंखलायें मर चुकी हैं।। प्रार्थना जो कर रहे हो कब सुनी किस देवता ने देवता क्या हैं कि इनकी आत्मायें मर चुकी हैं।। याचना से कुछ न होगा क्रांति के नारे उछालो मंत्र कुंठित हो चुके हैं अब ऋचाएं मर चुकी हैं।। रास्ता यह सिंधु देगा है हमें सन्देह राघव आज भय बिनु प्रीति की सम्भावनायें मर चुकी हैं।। सुरेश साहनी
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हुस्न पर एतबार ले डूबा। इश्क़ दिल का क़रार ले डूबा।। पार साहिल से सिर्फ़ कुछ पहले नाख़ुदा बन के यार ले डूबा।। तू है बीमार जिस मसीहा का उसको तेरा बुखार ले डूबा।। क्या लहर क्या भँवर कहाँ तूफां दिल की किश्ती को प्यार ले डूबा।। हम खिजाओं को खाक़ तोहमत दें जब चमन ही बहार ले डूबा।। साहनी कैसे बेमुरव्वत को दिल दिया था उधार ले डूबा।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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मुझको नया मिलता है हर बार कोई मुझमें। अक्सर किया करता है यलगार कोई मुझमें।। आराम नहीं देता वो मेरे ख़यालों को मुझसे लिया करता है बेगार कोई मुझमें।। आंखों में नहीं आता पलकों से नहीं जाता क्या इतना ज़ियादा है बेदार कोई मुझमें।। आख़िर ये मेरे अपने किसके लिये पागल है क्या इतना मोहतबर है क़िरदार कोई मुझमें।। दर्पन में मेरे अक्सर मैं ही नहीं दिखता हूँ क्या मुझसे बड़ा भी है अनवार कोई मुझमें।। मिल्लत के लिये मेरे भगवान जगा देना मिसबाह कोई मुझमें अंसार कोई मुझमें।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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तुम कहो तो ग़ज़ल कहें तुमको। एक खिलता कंवल कहें तुमको।। चाँद लिखना अगर पसंद न हो चांदनी का बदल कहें तुमको।। उलझनों से निजात देते हो राहतों की रहल कहें तुमको।। ताज से भी कहीं हसीं हो तुम क्यों न कन्चन महल कहें तुमको।। जबसे देखा है चैन गायब है क्यों न दिल का खलल कहें तुमको।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132