तुम्हारी आदतें गिरगिट से कितनी मिलती जुलती हैं।।



यादें तेरी आ आ के कुछ ऐसे सताती है
जगने भी नहीं देतीं सोने भी नहीं देतीं।।
तासीर तेरे गम की है खूब मसीहाई
मरने तो नहीं देती जीने भी नहीं देती।।

बहू के रंग ढंग या सास की नज़रें बदलती हैं ।
अगर चदामुखी ज्वालामुखी सी लगने लगती है।।
कभी बादल कभी बिजली कभी शोला कभी शबनम
तुम्हारी आदतें गिरगिट से कितनी मिलती जुलती हैं।।


धीरे धीरे मौत के मुंह में जाना ही है।
कारण सारे उसका एक बहाना ही है।।
नहीं पिए जो उनका भी मरना तय है
तो खाते पीते जाओ गर जाना ही है।।

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