हम तो राम को पार उतार कर भी

हम तो राम को
पार उतार कर भी
अपना परलोक 
सुधार कर भी
दरिद्र ही रहे।
कायर कपटी कुजाती
और नीच ही रहे।
मुगल काल में
अछूत हो गए
क्योंकि हमारी
बहनो से
मछली की बास आती थी।
और ठकुरसुहाती
तो बिलकुल नहीं आती थी।
अंग्रेजी राज में
क्रिमिनल कास्ट हो गए।
क्योंकि हमे
गुलामी बर्दाश्त नहीं थी।
चौरीचौरा से सत्तीचौरा तक
हमारा ही इतिहास है।
तिलका मांझी और
जुब्बा सहनीकी विरासत
हमारे ही पास है।
और आज भी हम
पार तो उतारते हैं
कभी बोट से
और कभी वोट से
फिर भी अपना समाज
उबर नहीं पाता है
क्योंकि हमें आज भी
नहीं आता है
बेटियों का सौदा करना
नहीं आता गुलामी करना
और नहीं आता
राजा से उतराई मांगना।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा