ये दुनिया है फ़क़त हरजाईयों की। किसे है फ़िक्र हम सौदायियों की।। थका हूँ आज मिलकर मैं ही ख़ुद से ज़रूरत है मुझे तन्हाइयों की।। मैं मरता नाम की ख़ातिर यक़ीनन कमी होती अगर रुसवाईयों की।। अँधेरों में कटी है ज़िंदगानी नहीं आदत रही परछाइयों की।। गले वो दुश्मनों के लग चुका है ज़रूरत क्या उसे अब भाईयों की।। लचक उट्ठी यूँ शाखेगुल वो मसलन तेरी तस्वीर हो अंगड़ाईयाँ की।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
Posts
- Get link
- X
- Other Apps
ज़ुल्म भी इन्तेहा तक ही कर पाओगे। हद से ज़्यादा भला ज़ुल्म क्या ढाओगे।। आईने कब से तारीफ़ करने लगे देखकर ख़ुद पे ख़ुद तो न इतराओगे।। तुम हो दुश्मन फ़क़त ज़िन्दगी तक मेरी बाद मेरे तो तुम ख़ुद ही मर जाओगे।। ख़ुद उलझते चले जाओगे बेतरह सोचते हो जो औरों को उलझाओगे।। दर्द का हद से बढ़ना दवा ही तो है ऐसी हालत में क्या तुम न झुंझलाओगे।।
- Get link
- X
- Other Apps
यूँ तो रिश्ता नहीं है ख़ास कोई। है मगर मेरे दिल के पास कोई।। मिल गया वो तो यूँ लगा मुझको जैसे पूरी हुई तलाश कोई।। मेरे हंसने से उज़्र था सबको क्या मैं रोया तो था उदास कोई।। हाले दिल यूँ अयाँ न कर सबसे शख़्स मिलने दे ग़मशनास कोई।। सिर्फ़ लाये हो इश्क़ की दौलत खाक़ देगा तुम्हें गिलास कोई।। क्या करूँ मैं भी बेलिबास आऊँ यां समझता नहीं है प्यास कोई।। साहनी लौट अपनी दुनिया मे तेरी ख़ातिर है महवे-यास कोई।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132