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 वो पीपल का पेड़ देखे हैं? मझौली चौराहे पर जिसकी छाँव तले जानवर और आदमी कोई भी आता जाता यात्री, थके हारे मज़दूर और किसान पनघट से लौटती पनिहारिने और गाँव के बच्चे भी आराम कर लेते हैं और तो और  उसी की छाँव में मैंने देखा है जुम्मन चाचा को नमाज़ पढ़ते हुए जिस की जड़ों में रखे शिव बाबा पर राम लग्गन पंडित जी  नित्य जल चढ़ा कर  परिक्रमा करते मिलते हैं। मैंने देखा है रग्घू चमार  वहीँ सुहताता है और जब राम अचरज बाबा बताते हैं क्षिति जल पावक गगन समीरा पांच तत्व मिलि रचत शरीरा।। तब वह बड़े भाव से   बरम बाबा को हाथ जोड़ कर परनाम करता है। वैसे तो किसिम किसिम की चिरई उप्पर बैठती हैं घोंसला बनायी हैं लेकिन उ कौवा बड़ा बदमाश है बाबा पर छिड़क दिया था रग्घू डरते डरते पोछे थे।
 वो किसी और के ख़याल में था ये मुलाक़ात  वस्ल  तो ना हुई ।।
 यार इस इश्क़ में मिला क्या है। ये कहो जेब मे बचा क्या है।। रात थाने में जम के टूट गई इश्क़ तशरीफ़ के सिवा क्या है।। तुम तो कहते हो कोई बात नहीं कुछ नहीं है तो फिर गिला क्या है।। उसने खाना ख़राब करके कहा मोहतरम खाने में बना क्या है।। हम हैं ख़ामोश कुछ न होने से हर तरफ शोर है हुआ क्या है।।
 ख़ुदा भी डरता है  इंसान की इस खूबी से  वो जिसे चाह ले  भगवान बना देता है।।सुरेश साहनी
 जब कभी भी यक़ीन पर लिखना। कुछ न कुछ आस्तीन पर लिखना।। आज धोखा फरेब मज़हब है क्या किसी और दीन पर लिखना।। आसमां के ख़ुदा से क्या मतलब तुम जो लिखना ज़मीन पर लिखना।। जो भी आता है भूल जाओगे छोड़ दो उस हसीन पर लिखना।। खुर्दबीनों ने ज़िन्दगी दी है व्यर्थ था दूरबीन पर लिखना।। जब कलम थामना तो याद रहे क़ाफ़ लिखना तो सीन पर लिखना।। साँप से भी गिरा मैं समझूंगा तुम ने चाहा जो बीन पर लिखना।। सुरेश साहनी, कानपुर
 कौन मुहब्बत के अफ़साने लिखता है। नफ़रत है दुनिया के माने लिखता है।। खुशियां जैसे दो कौड़ी की होती हैं वो ग़म को अनमोल ख़ज़ाने लिखता है।। वीरानों को ग़म की महफ़िल कहता है महफ़िल को ग़म के वीराने कहता है।। साथ रक़ीबों के वो मेरी तुर्बत पर गीत वफ़ा के मेरे साने लिखता है।। यार मेरे शायर को कोई समझाओ जब देखो दुनिया पर ताने लिखता है।। सुरेश साहनी, कानपुर
 कई पटल जब  लाइव पाठ कराते हैं। फोटू कवि संग दस के अउर लगाते हैं।। पर जब लाइव आता है कवि पाठन हित क्या वे दस भी श्रोता बनकर आते हैं।।