तुम अगर निकले ग़ैर क्या निकले। हम तो ख़ुद हम से दूर जा निकले।। जिस्मे-फ़ानी से क्या गिला करना रूह जब अपनी बेवफा निकले।।साहनी
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किसने बोला कि ख़ुद को ज़ाया कर। कुछ मगर नेकियां कमाया कर।। कुछ तो अहदे वफ़ा निभाया कर। याद आ आ के मत सताया कर।। बेवज़ह ख़ुद को मत रुलाया कर। गीत खुशियों के गुनगुनाया कर।। तेरे अपने ही तुझको भाव न दें ख़ुद को इतना भी मत पराया कर।। जो तुझे देख कर के हँसते हैं अपने ग़म उनपे मत नुमाया कर।। दुश्मनों को ही मत समझ दुश्मन दोस्तों को भी आज़माया कर।। साहनी ग़म से है रईस मग़र ख़ुद से दुनिया को मत बताया कर।।