कहने को भले लोग भी दो-चार मिलेंगे। वरना सभी मतलब के लिए यार मिलेंगे।। तुम पारसा हो उन्हें
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ये नहीं है कि प्यार है ही नहीं। दरअसल वो बहार है ही नहीं।। वो तजस्सुस कहाँ से ले आयें जब कोई इंतज़ार है ही नहीं।। फिर मदावे की क्या ज़रूरत है इश्क़ कोई बुख़ार है ही नहीं।। क्यों वफ़ा का यक़ी दिलायें हम जब उसे एतबार है ही नहीं।। मर भी जायें तो कौन पूछेगा अपने सर कुछ उधार है ही नहीं।। आपकी फ़िक्र बेमआनी है साहनी सोगवार है ही नहीं।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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किसलिये अजनबी ऊज़रे को भजें उससे बेहतर है हम सांवरे को भजें।। हमसे कहता है जो हर घड़ी मा शुचः हम उसे छोड़ क्यों दूसरे को भजें।। उसके मुरली की तानों में खोये हैं हम किसलिये फिर किसी बेसुरे को भजें।। बृज का कणकण मेरे यार का धाम है तब कहो अन्य किस आसरे को भजें।। जितना नटखट है उतना ही गम्भीर है हम उसे छोड़ किस सिरफिरे को भजें।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132