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 कहने को भले लोग भी दो-चार मिलेंगे। वरना सभी मतलब के लिए यार मिलेंगे।। तुम पारसा हो उन्हें
 हो लुधियाना कि दिल्ली सब बराबर धुँआ नथुनों में गोया बस गया है।।
 गर्दिशों में जूझ जा गिरदाब से बाहर निकल। शम्स है तू तीरगी के ताब से बाहर निकल।।
 ये नहीं है कि प्यार है ही नहीं। दरअसल वो बहार है ही नहीं।। वो तजस्सुस कहाँ से ले आयें जब कोई इंतज़ार है ही नहीं।। फिर मदावे की क्या ज़रूरत है इश्क़ कोई बुख़ार है ही नहीं।। क्यों वफ़ा का यक़ी दिलायें हम जब उसे एतबार है ही नहीं।। मर भी जायें तो कौन पूछेगा अपने सर कुछ उधार है ही नहीं।। आपकी फ़िक्र बेमआनी है साहनी सोगवार है ही नहीं।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 किसलिये अजनबी ऊज़रे को भजें उससे बेहतर है हम सांवरे को भजें।। हमसे कहता है जो हर घड़ी मा शुचः हम उसे छोड़ क्यों दूसरे को भजें।। उसके मुरली की तानों में खोये हैं हम किसलिये फिर किसी बेसुरे को भजें।। बृज का कणकण मेरे यार का धाम है  तब कहो अन्य किस  आसरे को भजें।। जितना नटखट है उतना ही गम्भीर है हम उसे छोड़ किस सिरफिरे को भजें।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 हर नेमत है प्रकृति में ममता का प्रतिरूप। मां गर्मी में छाँह है माँ सर्दी की धूप।।साहनी
 मज़लूमों को जेल भेजना तगडों को फटकार लगाना अब मुन्सिफ़ी है केवल सत्ता की नैया पार लगाना प्रबल झूठ को सत्य बताकर सहज सत्य  अपमानित करना श्वेत वसन हर अपराधी को नायक कह सम्मानित करना गुण्डों को उच्चासन देना सीधों को नीचे बैठाना