देश द्रोह के मानक तय होने चाहिए

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इस समय देश में राजनैतिक अराजकता छायी हुयी है.
ऐसा लगता है कि कानून और जनता सब नेताओं के
ठेन्गे पर है.क्षेत्र,भाषा और मज़हब के नाम पर खुले-
आम वैमनस्य फ़ैलाया जा रहा है. सरकारों मे या तो
साहस की कमी है या इच्छाशक्ति का अभाव है.क्योकि
ऐसी हरकतों पर कार्यवाही के नाम पर केवल खाना-
पूरी की जारही है. समाज में नफ़रत ,हिंसा की राज-
नीति करने वालों पर ठोस कार्यवाही करने की बजाय
छोटे मोहरों को गिरफ़्तार करना देश के कानून का
मज़ाक उड़ाना ही तो है.अब समय आ गया है कि
देश द्रोह क्या है इसे पुनः परिभाषित किया जाना चाहिये
वरना बहुत देर तो हो ही चुकी है.इन के उपद्रवों को ही
नियन्त्रित करने में देश की पुलिस और सुरक्षा एजेन्सियां
व्यस्त है. ऐसा प्रतीत होता है कि शिवसेना और मनसे की
आइ एस आइ से कुछ साँठ्गाँठ है.

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