बचना बजते गालों से।
झूठों और दलालों से।।
हँस कर लुटने जाते हो
मज़हब के रखवालों से।।
रिश्ते अब क्षणभंगुर हैं
बेशक़ हों घरवालों से।।
उनको दौलत हासिल है
हम जैसे कंगालों से।।
सिर्फ़ नकलची लिखते हैं
सावधान नक्कालों से।।
पूँछ लगा कौवे भी अब
दिखते मोर मरालों से।।
ये सचमुच वह दौर नहीं है
बचना ज़रा कुचालों से।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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