पहले कोई नया ख़याल मिले।

तब तो अपनी कलम को चाल मिले।।


हुस्न कितना भी बेमिसाल मिले।

इश्क़ वाले ही लाज़वाल मिले।।


ज़िन्दगी चार दिन रही यारब

मौत को फिर भी इतने साल मिले।।


सरनिगू  हैं यहाँ  पे हर पैकर

कोई तो सिरफिरा सवाल मिले।।


मान लेंगे कि उसने याद किया

जब कि शीशे में एक बाल मिले।।


कैसे मानें मेरे ख़याल में है

एक दिन तो वो बेख़याल मिले।।


साहनी खाक़ ज़िन्दगी है जो

हर क़दम पर न एक जाल मिले।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा