हूबहू मुझ सा ही किरदार कोई है मुझमें।

या तो मेरा लिया अवतार कोई है मुझमें।।


मैं तो जानूँ हूँ गुनहगार कोई है मुझमें।

लोग कहते हैं कि अबरार कोई है मुझमें।।


मैं तो काफ़िर हूँ मुझे उस पे यकीं छोड़ो भी

सब ये समझे हैं कि दीं-दार कोई है मुझमें।।


शौक़ इतना है अदीबों से शनासायी  का

मैं तो नादार हूँ ज़रदार कोई है मुझमें।।


मेरे ही दिल मे मुझे मैं नहीं दिखता शायद

तीरगी की बड़ी दीवार कोई है मुझमें।।


आईना देख के मैं ख़ुद भी सहम उठता हूँ

गोया मुझसे बड़ा खूँखार कोई है मुझमें।।


छोड़ कर दैरोहरम मैक़दे चल देता है

मैं नहीं शेख़ वो मयख़्वार कोई है मुझमें।।


हूबहू/एक समान

क़िरदार/ चरित्र, व्यक्तित्व, अबरार/पवित्र, नेकदिल

काफ़िर/नास्तिक, दीं-दार/धार्मिक, अदीब/साहित्यकार, शनासाई/ परिचय, नादार/निर्धन, ज़रदार/धनवान, तीरगी/अँधेरा, गोया/जैसे कि, खूँखार/भयानक, दैरोहरम/मन्दिर-मस्जिद, मैकदा/शराबघर, मयख्वार/ शराबी


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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