हिंदी के सो काल्ड चिन्तक!

हिंदी को कमजोर बताने वाले बहुत हैं| वे इसी में खुश हैं की हिंदी को बेचारी,कमजोर ,जीविका हीन भाषा बताकर हिंदी भाषियों पर एहसान कर दिया| उन्हें अपने वक्तव्य पर ताली सुनकर गर्वानुभूति होती है|होनी भी चाहिए|आखिर वे जस्टिस काटजू के अनुयायी जो 
ठहरे|उन्होंने पोस्ट बॉक्स का अनुवाद पत्रघुसेड़ लिखा था| जबकि पत्र-पेटी,पत्र-पेटिका या पत्र-मञ्जूषा जैसे अनेक विकल्प थे|ऐसे हिंदी के शुभ चिंतकों से ही हिंदी का उन्नयन होना है तो राम बचाए|हिंदी में मूल शब्द पचास हज़ार से अधिक हैं जबकि अंग्रेजी में मात्र दस हज़ार मूल शब्द हैं|भाषा की मजबूती उसकी शब्द संख्या -बल है|अंग्रेजी या अंग्रेजों ने विदेशी भाषाओँ से शब्द ग्रहण किये|आज उनके पास भारतीय भाषाओँ के लगभग एक लाख शब्द हैं|उनका शब्दकोष छः लाख के करीब है|हम हिंदी को सरल और सुग्राह्य बनाने की बजाय शुद्ध और क्लिष्ट करने में उर्जा व्यय कर रहे हैं|मैं हिंगलिश को या उनके पैरोकारों को धन्यवाद देता हूँ की वे हिंदी को सही मायने में अंतर्राष्ट्रीय भाषा बना रहे हैं|मैं उर्दू का, भारतीय सिनेमा का भी ऋणी हूँ की उन्होंने हिंदी को लोकप्रिय बनाने में पूर्ण योगदान दिया है|आज हिंदी कमजोर नहीं जीवंत और शक्तिसंपन्न भाषा है|आज करोड़ों लोग हिंदी की कृपा से कोई भी भाषा सीख रहे हैं,सीख चुके हैं और सफल उपार्जन कर रहे हैं|कम से कम उन लोगों को तो अपना मुह बंद ही रखना चाहिए जो हिंदी की ताकत जाने बिना उसे बेचारी,दुःख की मारी बताते फिरते हैं|जय हिंदी,जय भारत|

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