मेरी दो कवितायेँ .....

मेरी घटिया किन्तु मंचीय कविता आपके अवलोकनार्थ-

1.आम आदमी में जो एलिट क्लास बना है| 
चोरी की कविता से कालिदास बना है||
जली झोपड़ी तब उनका आवास बना है|
इसी तरह से वर्तमान इतिहास बना है||
चोरी,डाका,राहजनी,हत्या ,घोटाला,
इस क्रम से परकसवा श्रीप्रकाश बना है||
बिरयानी के साथ रिहाई मांग रहा है,
न्याय व्यवस्था का कैसा उपहास बना है||
कौन मिलाता है केसर,असगंध ,आंवला,
घास फूस से मिलकर च्यवन पराश बना है||
जूता-चप्पल ,गाली-घूंसा ,मारा-मारी,
लोकतंत्र का संसद में बनवास बना है||
संसद है ये,जंगल है या कूड़ाघर है,
या असीम के शब्दों में संडास बना है||
बलवंत सिंह हो या अफजल हो ,या कसाब हो,
हर चुनाव इनकी फांसी में फाँस बना है|| 





2.
वेदनाओं को नया स्वर दे रहा हूँ.
मृत्यु को अमरत्व का वर दे रहाहूं 

नग्न होकर घुमती है राजपथ पर ;
लोग जीवित लाश जिसको कह रहे हैं.
हा यही है इस व्यवस्था की नियंता '
साठ वर्षों से जिसे हम सह रहे हैं.

तंत्र को जन का कलेवर दे रहा हूँ.......

कुछ तो काला है ,सवाली पूछता है,
या है पूरी दाल काली पूछता है,
तुमने ली या उसने ली या जिसने ली,
किसने कितनी ली दलाली पूछता है.

तुमको जन-भगवान का डर दे रहा हूँ......

राम का निर्माण उनका वनगमन है,
कर्बला इस्लाम का पुनरागमन है,
राष्ट्र का आह्वान है,वापस मंगाओ,
देश से बाहर जहाँ अश्वेत धन है.

पुनः प्रायश्चित का अवसर दे रहाहूँ,
--सुरेश साहनी

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