हम तो यूँही भौक रहे हैं|
आप मगर क्यूँ चौंक रहे हैं|| 
वादा करना और भूलना,
आप के क्या-क्या शौक रहे हैं||
 मेरा  दामन काला क्यूँ है|
उसके घर उजिआला क्यूँ है||
कौन   हैं जो झोपड़ीकी  तरफ,
बढ़ा  उजाला रोक रहे हैं||
एक  तरफ सड़ता अनाज है,
बदले  में बेचनी लाज है,
भूखे पेट की खातिर  अपना,
तन  बाजार में झोंक रहे हैं||
आज तलक तो यही पढ़ा है,
निजी स्वार्थ से देश बड़ा है,
आज यही जब   पढ़ा रहा हूँ,
नौनिहाल   क्यूँ टोक रहे हैं||

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