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Showing posts from April, 2025
 सब को लगता है पा के बैठे हैं। जबकि हम सब गँवा के बैठे हैं।। दौलते-दिल लुटा के बैठे हैं। क्या लगा दिल लगा के बैठे हैं।। होम करने में कुछ तो जलना था हम भी दामन जला के बैठे हैं।। ज़िन्दगी का सफ़र तो क़ायम है तुम को लगता है क्या के बैठे हैं।। हम पे इतना यक़ीन ठीक नहीं हम हमें आज़मा के बैठे हैं।। भीड़ में खुद से लापता थे हम यूँ नहीं दूर आ के बैठे हैं।। साहनी
 उन ख़्वाबो-ख्यालों में उलझने से रहे हम। उल्फ़त के सवालों में उलझने से रहे हम।। अब सेब से गालों पे फिसलने नहीं वाले फिर अबरयी बालों में उलझने से रहे हम।। तक़दीर के साहिल पे यां गिरदाब है इतने दुनिया तेरी चालों में उलझने से रहे हम।। दुनिया के फ़रेब हैरतो-अंगेज हैं यूँ भी सो  हुस्न के जालों में उलझने से रहे हम।। अब शहरे-ख़मोशा के अंधेरे हैं नियामत इन स्याह उजालों में उलझने से रहे हम।। जब साहनी उलझे हैं मसाइल में ज़हां के तब और बवालों में उलझने से रहे हम।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 चलेगा यदि हमें दुनिया न समझे। खलेगा तू अगर अपना न समझे।। हमें हरगिज़ ज़हां सच्चा न समझे। हमारा यार तो झूठा न समझे।। हमें ख़ुद्दारियों की छत मिली है ज़माना क्यों हमें उजड़ा न समझे।।
 तुम नहीं तो क्या सहारे और हैं। और सूरज चाँद तारे और हैं।। क्या गुमाँ है इक तुम्हारे और हैं। सुन कि कितने ही हमारे और हैं।। तुमने क्या सोचा कि हम जां से गये अपनी किस्मत के सितारे और हैं।।  हुस्न पर बेशक़ ज़माना हो फिदा इश्क़ वालों के नजारे और हैं।। कुछ तो होंगे साहनी अहले-वफ़ा किस तरह कह दें कि सारे और हैं।। सुरेश साहनी, कानपुर
 बेवज़ह की रार में मारा गया। मैं यहाँ बेकार  में मारा गया।।  कोई सुनता है ये कैसे मान लें सर अगर दीवार में मारा गया।। बस अहिल्या ही सदा शापित हुई इंद्र कब व्यभिचार में मारा गया।। देह का क्या बेवज़ह रूठी रही और मन मनुहार में मारा गया।। काश नफ़रत सीख जाता साहनी इब्तिदा-ए- प्यार मे मारा गया।। सुरेश साहनी, कानपुर