समन्वयवाद(COHERISM)

उपलब्धता ,आवश्यकता और उपभोग के बीच संतुलन ही समन्वय है।समन्वय सहज भौतिक क्रियाओं और वैज्ञानिक प्रतिपादनों को स्वीकार करता है।प्रकृति,विकास और समाज के बीच किसी भी प्रकार का असंतुलन विनाश को जन्म देता है।जो घट चुका है,जो घट रहा है और जो घटेगा इन सब के मध्य समीचीनता ही समन्वय है।जहाँ कार्लमार्क्स का द्वंदात्मक भौतिकवाद अभिजात्य वर्ग और मेहनतकशों के बीच सतत द्वन्द की बात करता है,और निर्णायक संघर्ष को अवश्यम्भावी मानता है।किंतु समन्वयवाद की अवधारणा यह है कि प्रत्येक स्थिति में जीवन का यथार्थ अथवा सभी समस्याओं की परिणति #समन्वय है।
अतः संक्षेप में हम कह सकते हैं कि समस्या,संघर्ष और विपरीतता का सही विकल्प समन्वय है।समन्वय के बिना सर्वांगीण विकास,समेकित विकास ,मानव कल्याण और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की कल्पना असम्भव है।
परस्पर विपरीत गुणों का समन्वय ही सृजन है।किसी भी सात्विक समन्वय का विरोध ही विनाश है।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है