साम्प्रदायिक रोटियां
दो कौर क्या ठूँसा दिया बवाल हो गया। हमारे सांसद बड़े धार्मिक हैं। वे कोई ऐसा वैसा काम नहीं करते ,जिससे पार्टी को फायदा ना मिले। वैसे काम ही करना होता तो सांसद काहे बनते?काम करने के लिए तो भैय्या(यूपी-बिहार वाले) लोग हैं ही।हम खाने में यकीन रखते हैं,इसीलिए इस धंधे में हैं। हमारे यहाँ सब खाते हैं। हम माल खाते हैं। अल्पसंख्यक भय खाते हैं। भैय्या लोग मार खाते हैं। गुरूजी ने पढाया था कि भूखे को भोजन कराना पुन्य का काम है।यही सोच के निवाला ठुंसाया था कि इस भूखे के पापी पेट में भी रोटी के दो निवाले चले जायें। लेकिन लोग है कि बात का बतंगड़ बनाने में लगे हैं। अब जितना दर्द उस भूखे को रोटी के एक कौर से नहीं हुआ होगा (वैसे दर्द नहीं सुख लिखना चाहिए )उससे ज्यादा दर्द विरोधियों को हो रहा है। अरे मैं तो कहता हूँ ,तुम्हारे राज में भूखों को भोजन मिला होता तो तुम्हारी सरकार नहीं जाती।ऑडिट वालों का पेट भर देते तो तुम्हारे विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप ही नहीं लगते। सौ सांसदों की भूख ही उन्हें पार्टी छोड़ने को मजबूर कर गयी।अभी हमारी सरकार फलाने स्टेट में आने तो दो ।किसी भकुए को भूखा नहीं रहने देंगे।भूखा रहना है तो परमीशन लेना पड़ेगा। बाकायदा एक मंत्रालय बनवा देंगे।और भूख से मरने पर जुरमाना लगेगा। वैसे तो हमको विरोधी पसंद ही नहीं ,लेकिन अनशन पर भी बैन लगवा देंगे।और हम कौनो धरम मानते ही नहीं तो धरम के खिलाफ का सोचें?हम छठ पूजा पर भी पाबन्दी लगायेंगे। बिचारी औरतें तीन तीन दिन पानी तक नहीं पीती हैं।साफ़ कह देंगे जिस को भूख से मरना है यूपी -बिहार चले जाओ।का बताएं भाऊ! ऐसा समय आ गया है भलाई करने में फँस रहे हैं।
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