पत्र
तुमसे दूर यहाँ पर डेरा
अर्थहीन है सांझ सवेरा
मेरी भटकन दून नगर में
मन का लगता तुम तक फेरा
तुमसे....
साथ तुम्हारे सदा सरसता
बिना तुम्हारे हाय विवशता
तुम बिन मुझे अकेला पाकर
नीरसता ने डाला घेरा....
तुमसे....
हूं विदेह संकेत समझना
भूल गया हूं आपा अपना
तुम बिन इस यायावर मन का
देह बनी है रैन बसेरा......
तुमसे.......
तुमसे केवल एक निवेदन
यथा शीघ्र हो पत्र भेजना
पत्र तुम्हारा धैर्य-दीप बन
किन्चित कर दे दूर अन्धेरा....
...तुमसे दूर यहाँ पर डेरा
अर्थहीन है सांझ सवेरा.....॥
अर्थहीन है सांझ सवेरा
मन का लगता तुम तक फेरा
तुमसे....
साथ तुम्हारे सदा सरसता
बिना तुम्हारे हाय विवशता
नीरसता ने डाला घेरा....
तुमसे....
हूं विदेह संकेत समझना
भूल गया हूं आपा अपना
देह बनी है रैन बसेरा......
तुमसे.......
तुमसे केवल एक निवेदन
यथा शीघ्र हो पत्र भेजना
किन्चित कर दे दूर अन्धेरा....
...तुमसे दूर यहाँ पर डेरा
अर्थहीन है सांझ सवेरा.....॥
स्व: सतीश पाण्डेय को समर्पित!
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