मेरे पिता जी
बाँहों में अपनी हमको झुलाते थे जो,गये। सीने पे अपने हमको सुलाते थे जो,गये॥ कांटे मेरी डगर से हटाते थे जो,गये। ऊँगली पकड़ के चलना सिखाते थे जो,गये॥ कन्धा जरा सा देने में हम पस्त हो गये काँधे पे अपने रोज घुमाते थे जो,गये॥ हम चूक गये हाय इस ख़राब दौर में, ,हाँ हर बुरी नजर से बचाते थे जो,गये॥ गम और ख़ुशी के मशविरे किससे करेंगे हम मुश्किल घड़ी में राह दिखाते थे जो,गये॥ मेरे पिता के जैसा मेरा खैरख्वाह कौन हरदम दुआ के हाथ उठाते थे जो,गये॥