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Showing posts from April, 2013

छोटुवा

एगो मित्र के दुकान कस्बा में बावे ,एकदम्म रोडवे से सटल ।मित्र के छोट भाई छोटू बैठेलन । एक हाली गौंवे के एगो काका लगिहन बाछी लिहले जात रहुवन । छोटूवा बोललस ,काका सकराहे केने हो ? काका कहुवन ,पाल खईले बिया भारी करे ले जात बानी । बात आईल गईल हो गईल । एक दिन काका काकी के साथै जात रहुवन । छोटुवा पूछता ,ए काका आजू नाही बताईब केने जात हईं ?काका लाठी तान के खदेर लिहलन ।

दिल्ली चलो

कुछ बनना है तो दिल्ली चलो ,'मेरे मित्र कवि श्री अमरीक सिंह दीप ने यह कविता बीसेक साल पहले लिखी थी । मैं अक्सर देखता हूँ की सारी गोष्ठियां ,सम्मेलन ,कांफ्रेंस सब दिल्ली में होते हैं । इस हिसाब से लगता है ,  सारे बुद्धिजीवी दिल्ली  में ही रहते हैं । बाकि माने चूँ चूँ का मुरब्बा । शायद आ शुतोष कुमार और अमरेन्द्र जैसे जे एन यू वाले मित्र मुझसे सहमत होंगे ।