उसके दीद की ख़्वाहिश भी है।
और उसी से रंजिश भी है।।
शायद वो तफ़रीह पे आयें
बागों में आराइश भी है।।
कुछ अपना भी दिल कहता है
कुछ उसकी फरमाइश भी है।।
रुसवाई का डर है लेकिन
लाज़िम आज नुमाइश भी है।।
इश्क़ नहीं है इतना आसां
इन राहों में लग्ज़िश भी है।।
है इज़हार ज़रूरी इसमें
और ज़ुबाँ पर बन्दिश भी है।।
वो सुरेश भी आशिक है क्या
वो तो अहले-दानिश भी है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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