आग पानी में हरदम लगाते रहे।
यूँ लगी अपने दिल की बुझाते रहे।।
वो ही ख़ामोशियों से सताते रहे।
उम्र भर हम जिसे गुनगुनाते रहे।।
ख़ूब वादे किये ख़ूब आते रहे।
एक हम थे दिलो जां लुटाते रहे।।
कोई झूठी तसल्ली भी देता तो क्यों
हालेदिल हम बुतों को सुनाते रहे।।
कौन खाता तरस या पिघलता तो क्यों
अश्क हम पत्थरों पर बहाते रहे।।
साहनी सुरेश कानपुर
9451545132
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