बारिशों में भी सुलग पड़ता हूँ।
नींद आती है कि जग पड़ता हूँ।।
अजनबीपन है तेरी दुनिया में
क्यों मै अपनों में अलग पड़ता हूँ।।
पाँव के कांटे निकाले जिसके
वो ये कहता है कि पग पड़ता हूँ।।
क्यों दबाते हैं ये कमज़र्फ मुझे
क्या मैं कमजोर सी रग पड़ता हूँ।।
मुझको ग़ैरों से कोई खौफ़ नहीं
हर किसी से गले लग पड़ता हूँ।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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