हमारे दिन हमें क्यों कर पता हो।
अगर कल दुर्दशा का तर्जुमा हो।।
मुहब्बत कर के गलती की है मैंने
महज इस जुर्म की कितनी सजा हो।।
हमें तुम याद क्यों आते हो इतना
तुम्हे जबकि हमारी याद ना हो।।
ये मत सोचो तुम्हे मैं चाहता हूँ
हमें तुमने अगर धोखा दिया हो।।
मेरे स्कूल में पढ़ता था वो भी
बहुत अच्छा था जाने अब कहाँ हो।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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