हूक सी दिल मे उठा करती रही।

जब कमी तेरी खला करती रही।।


हर नज़र खुदगर्ज है यह देखकर

जीस्त ख़ुद को आईना करती रही।।


हुस्न को फुर्सत कहाँ थी ध्यान दे

आशिक़ी नाहक वफ़ा करती रही।।  


हाल उन बेटों ने पूछा ही कहाँ

माँ मगर फिर भी दुआ करती रही।।

 

तंज, फ़िकरे हिर्स नज़रों की चुभन

बेबसी क्या क्या सहा करती रही।।


क्या पता था है मुदावा मौत में

ज़िन्दगी कितनी  दवा करती रही।।


ग़म हैं लाफानी तेरे यह सोचकर

ज़िन्दगी ख़ुद पर हँसा करती रही।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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