जितनी तेजी से विज्ञान तरक्की कर रहा है।मानव उससे भी दोगुनी तेजी से विज्ञान पर लदा जा रहा है।कम्प्यूटर और अभियांत्रिकी का गठजोड़ एक दिन इंसान को पूरी तरह बेरोजगार बना देगा, इस बात को लेकर ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के लोग भले चिन्ता करें विकासशील और पिछड़े देश इसी तरह की चर्चा को प्रगति मान कर कहते हैं कि, तुम तो बौड़म हो। तुम्हे कछू पता भी है अमरीका जापान में लोग अपने हाथ से शौचते भी नहीं हैं।
ख़ैर हम तो विश्वगुरु ठहरे। अपने देश में भी अपने हाथ से काम करने वाले बहुत अच्छे नहीं माने जाते । इसीलिए हमारे नए नेतागण रोज़गार के हर क्षेत्र में संख्याबल कम कर रहे हैं।उनका साफ साफ कहना है करप्शन फ्री समाज की स्थापना तभी सम्भव है जब सेवाओं का सांगोपांग मशीनीकरण कर दिया जाये।
और इस की शुरुआत भारत में लगभग हो चुकी है। इस समय देश में सेवा के लगभग हर क्षेत्र में छंटनी का दौर चल रहा है और नयी भर्तियों पर रोक तो पहले से लगी हुई है।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारतीय रेल है। एक समय मे दुनिया मे सबसे अधिक रोजगार देने वाला संस्थान में अब गार्ड्स और लोको पायलट की भर्तियां भी नहीं के बराबर हो रही हैं।
कुछ दिनों पहले उबेर नाम की टैक्सी सेवा देने वाली कम्पनी ने चेन्नई शहर में ड्राइवर विहीन टैक्सी सेवा प्रदान करके रिकॉर्ड बनाया था। अब भारतीय रेल ने जम्मू से पंजाब रेलवे ट्रैक पर एक मालगाड़ी लगभग अस्सी किलोमीटर तक बिना लोको पायलट के दौड़ा दी। इस घटना से सम्बंधित रेल अधिकारियों और देखने सुनने वाले लोगों के हाथ पांव फूल गये।बताते है कि उस गाड़ी के स्टाफ को निलंबित कर दिया गया है। मैं इस कार्यवाही को कतई उचित नहीं मानता।आख़िर जब चन्द्रमा तक यान बग़ैर पायलट के जा सकता है तो इस अस्सी किलोमीटर में कौन सी आफत आ गयी थी।
पर पिछड़ी मानसिकता के अधिकारियों को कौन कहे। मुझे एक किस्सा याद आता है कि कुख्यात आक्रमणकारी नादिरशाह से पराजित मुगल बादशाह और दर्जन भर राजाओं ने मिलकर उसे खुश करने के लिये ढेर सारा नज़राना और कुछ हाथी भेंट भिजवाया।
नादिरशाह ख़ुश तो हुआ पर हाथी को देखकर अचरज में पड़ गया। उसने पूछा ,यह किस काम आएगा?
एक सिपहसालार ने बताया कि यह युद्ध में और अन्य रूप में सवारी के काम आता है।"
नादिरशाह ने कहा, 'बहुत अच्छा!पर इसकी लगाम कहाँ है?
एक राजा ने बताया कि इसकी लगाम नहीं होती।
नादिरशाह ने तुरंत कहा कि हम ऐसी कोई सवारी पसंद नहीं करते जो बेलगाम हो या उसकी लगाम किसी और के हाथों में हो।
इसी मानसिकता के चलते नादिरशाह अच्छा शासक नहीं बन पाया।उसे इतिहास में मात्र एक लुटेरा कहा गया है। हम इस बेलगाम रेलगाड़ी के चलने का स्वागत करते हैं।
व्यंग्य- सुरेश साहनी कानपुर
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