मैं कहाँ मैं हूँ नहीं
सोचता हूँ हूँ नहीं
है नहीं पर क्या करूँ
किस तरह कह दूँ नहीं
तुम मेरे दिल में रहो
मैं कहीं झाँकूँ नहीं
सबमुझे समझा रहे
मैं अधिक सोचूं नहीं
आप जितना सोचते हो
नेक उतना हूँ नहीं
धर्म क्या है क्या कहूँ
जब धर्म पर मैं हूँ नहीं।।
सुरेशसाहनी
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