एक अदद मीत के लिए तरसे।

उम्र भर प्रीत के लिए तरसे।।


जिस तरह डूब कर ख़यालों में

एक कवि गीत के लिये तरसे।।


इस क़दर शोर था रवायत में

कान संगीत के लिए तरसे।।


हार में जीत है मुहब्बत की

हार कर जीत के लिए तरसे।।


दिल के सौदे में जान देने की

वारुणी रीत के लिए तरसे।।


मन को मथता है मन्मथी मौसम

श्याम नवनीत के लिए तरसे।।


वो बदलता है रोज़ रस्मे वफ़ा

 हम महज़ रीत के लिए तरसे।।


सुरेशसाहनी, कानपुर

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