उसे ही मिल गयी है रहनुमाई।

शहर में आग जिसने थी लगाई।।


समझ लीजै वो नेता बन गया है

सभासद है अभी पहले था भाई।।


किसे है फ़िक़्र आख़िर कौन था वो

बुझी तो अब किसी ने भी बुझाई।।


हमारी सिम्त होंगी तीन अंगुली

किसी पर एक अंगुली जो उठायी।।


चलो अखबार पढ़ कर देखते हैं

किसी कोने में तो होगी सच्चाई।।


इलेक्शन में कहाँ का भाईचारा

बनाते हैं किसी चारे को भाई।।


सदा का कोई मतलब ही नहीं है

अगर ख़ामोश है उसकी ख़ुदाई।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545432

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