अब झूठों का ज़ोर सुनाई पड़ता है।
सच कितना कमजोर सुनाई पड़ता है।।
भीड़भाड़ में जब मैं तन्हा होता हूँ
सन्नाटे का शोर सुनाई पड़ता है।।
प्यार मुहब्बत की तोपों के जादू से
दिल्ली से लाहौर सुनाई पड़ता है।।
कहता तो है मैं किसान के हक़ में हूँ
क्यों मुझको कुछ और सुनाई पड़ता है।।
चोरों लम्पट और उठाईगीरों का
किस्सा चारो ओर सुनाई पड़ता है।।
काहे को साहब की जय चिल्लाते हो
मुझको आदमखोर सुनाई पड़ता है।।
तुम सुरेश को चौकीदार बताते हो
ईंन कानों को चोर सुनाई पड़ता है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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