झूठ जीते कि कोई सच हारे।
कौन सोचे है यहाँ इतना रे।।
वो फ़सादात पे आमादा है
तो जाये दीवार पे सर दे मारे।।
आग पानी से कहाँ बुझती है
जाके लाये न बड़े अंगारे।।
रात की सुब्ह नहीं दिल्ली में
लाख सूरज हो यहां भिनसारे।।
है हुक़ूमत यहाँ अंधेरों की
रोशनी हो तो कहाँ से प्यारे।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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