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 तुम तट तीर विहरना प्रियतम भव मंझधार मुझे दे देना मधुवन मधुवन जीना जीवन  सब पतझार मुझे दे देना...... आतप शीत वृष्टि की सारी पीड़ाएँ मुझको दे देना ऋतू बसन्त हेमन्त शिशिर से निज तन मन सुखमय कर लेना रंग महल में तुम रह लेना दुख के द्वार मुझे दे देना.........मधुवन बचपन से लेकर यौवन तक कब तुमसे कुछ भी मांगा है किन्तु तुम्हारे से सनेह का यह जो कोमलतम धागा है यह भी बोझ लगे यदि तुमको इसका भार मुझे दे देना......मधुवन इस पीड़ा में कितना सुख है प्रेम प्रेम में रोना भी है पा लेना ही प्रेम नहीं है कभी कभी कुछ खोना भी है तुम राधा मैं श्याम बन सकूं यह अधिकार मुझे दे देना.... मधुवन सुरेश साहनी कानपुर