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और कितनी कहानियाँ सुनता।। ग़ज़ल

किस लिए बदगुमानियाँ सुनता। और कितनी कहानियाँ सुनता।। झुर्रियां लौट तो नहीं जाती लाख उनकी जवानियाँ सुनता।। वो  ख़ुदा  है कहाँ रहमदिल जो इश्क़ वालों की बानियाँ सुनता।। कुछ तो कहता मिज़ाज़ की अपने कुछ हमारी जुबानियाँ सुनता।। चाँद ठहरे हुए समंदर की खाक़ रुक कर रवानियाँ सुनता।। मैं भी अब उठ चुका जनाज़ा था कैसे अर्ज़े- जनानियाँ सुनता।। बेसिर-ओ-पैर गुफ़्तगू चलती और फ़र्ज़ी बयानियाँ सुनता।। सुरेश साहनी, अदीब ,कानपुर