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पेशावर संहार पर
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फरेब ओ छल से बावस्ता नहीं था। कोई भी उनमे शाइस्ता नहीं था।। मुजाहिद थे वो गोया कर्बला के किसी ने भागना सीखा नहीं था।। न था नफरत का उनको इल्म कोई उन्हें बदले का अंदेशा नहीं था।। सभी असगर सभी लख्ते जिगर थे कोई इबलीस का शोहदा नहीं था। सभी थे अम्न इमां के पयम्बर कोई सल्फी ओ फजलुल्ला नहीं था।। खुदाई नेमतों को मारने में कलेजा क्यों तेरा काँपा नहीं था।। मैं हिन्दू होने पर गर्व नहीं कर पाता हूँ क्योंकि हिन्दू बताते ही जाति भी पूछी जाती है। जाति से तय हो जाती है योग्यता और तय हो जाता है मेरा चौथा या पांचवा दर्जा। फिर भी मैं हिन्दू रहना चाहता हूँ। क्योंकि यहां जीने की #आज़ादी तो है।(#बहावी आतंकवाद पर)