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Showing posts from February, 2025
 हमारे दिन हमें क्यों कर पता हो। अगर कल दुर्दशा का तर्जुमा हो।। मुहब्बत कर के गलती की है मैंने महज इस जुर्म की कितनी सजा हो।। हमें तुम याद क्यों आते हो इतना तुम्हे जबकि हमारी याद ना हो।। ये मत सोचो तुम्हे मैं चाहता हूँ हमें तुमने अगर धोखा दिया हो।। मेरे स्कूल में पढ़ता था वो भी बहुत अच्छा था जाने अब कहाँ हो।। सुरेशसाहनी, कानपुर
 आज अपने ख़िलाफ़ है सब कुछ मूड क्या आज ऑफ है सब कुछ मेरा उसका बंटा हुआ क्या है प्यार में हाफ हाफ है सब कुछ गोष्ठी है कोई न बोलेगा खूब कहिये मुआफ़ है सब कुछ नींद जाने किधर है क्या बोलें यूँ तो बिस्तर लिहाफ है सब कुछ मेरा दिल मेरी जेब आईना आज मौसम सा साफ है सब कुछ सुरेशसाहनी, कानपुर
 कमी कोई न थी अपने मिलन के वादों में। कमी थी सिर्फ़ मेरे और तेरे इरादों में।। कि तेरे शहर का मौसम यूँही नहीं नम है मैं अश्क़बार हुआ हूँ तेरी ही यादों में।। सुरेश साहनी
 अब झूठों का ज़ोर सुनाई पड़ता है। सच कितना कमजोर सुनाई पड़ता है।। भीड़भाड़ में जब मैं तन्हा होता हूँ सन्नाटे का शोर सुनाई पड़ता है।। प्यार मुहब्बत की तोपों के जादू से दिल्ली से लाहौर सुनाई पड़ता है।। कहता तो है मैं किसान के हक़ में हूँ क्यों मुझको कुछ और सुनाई पड़ता है।। चोरों लम्पट और उठाईगीरों का किस्सा चारो ओर सुनाई पड़ता है।। काहे को साहब की जय चिल्लाते हो मुझको आदमखोर सुनाई पड़ता है।। तुम सुरेश को चौकीदार बताते हो ईंन कानों को चोर सुनाई पड़ता है।। सुरेश साहनी, कानपुर
 झूठ जीते कि कोई सच हारे। कौन सोचे है यहाँ इतना रे।। वो फ़सादात पे आमादा है तो जाये दीवार पे सर दे मारे।। आग पानी से कहाँ बुझती है जाके  लाये न  बड़े अंगारे।। रात की सुब्ह नहीं दिल्ली में लाख सूरज हो यहां भिनसारे।। है हुक़ूमत यहाँ अंधेरों की रोशनी हो तो कहाँ से प्यारे।। सुरेश साहनी, कानपुर
 नयन यूँ ही नहीं हैं डबडबाये। बहुत दिन हो गये थे मुस्कुराये।। तुम्हारी याद कब आयी न पूछो बताओ क्या मुझे तुम भूल पाये।। कभी तुम आशना थे ये तो तय है पता मेरा कहाँ से ढूंढ लाये।। जो दिल के घाव हैं भरने लगे हैं न याद आकर कोई फिर से सताये।। जिसे दिल से गये मुद्दत हुई हो बला से वो इधर आये न आये।। सुरेश साहनी
 जितनी तेजी से विज्ञान तरक्की कर रहा है।मानव उससे भी दोगुनी तेजी से विज्ञान पर लदा जा रहा है।कम्प्यूटर और अभियांत्रिकी का गठजोड़ एक दिन इंसान को पूरी तरह बेरोजगार बना देगा, इस बात को लेकर ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के लोग भले चिन्ता करें विकासशील और पिछड़े देश इसी तरह की चर्चा को प्रगति मान कर कहते हैं कि, तुम तो बौड़म हो। तुम्हे कछू पता भी है अमरीका जापान में लोग अपने हाथ से शौचते भी नहीं हैं।   ख़ैर हम तो विश्वगुरु ठहरे। अपने देश में भी अपने हाथ से काम करने वाले बहुत अच्छे नहीं माने जाते । इसीलिए हमारे नए नेतागण रोज़गार के हर क्षेत्र में संख्याबल कम कर रहे हैं।उनका साफ साफ कहना है करप्शन फ्री समाज की स्थापना तभी सम्भव है जब सेवाओं का सांगोपांग मशीनीकरण कर दिया जाये।   और इस की शुरुआत भारत में लगभग हो चुकी है। इस समय देश में सेवा के लगभग हर क्षेत्र में छंटनी का दौर चल रहा है और नयी भर्तियों पर रोक तो पहले से लगी हुई है।  इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारतीय रेल है। एक समय मे दुनिया मे सबसे अधिक रोजगार देने वाला संस्थान में अब  गार्ड्स और लोको पायलट की भर्तियां भी नहीं के बराबर हो र...
 जाँची परखी नपी तुली। मेरी प्यारी सखी तुली।।
 भगत सिंह के सहयोगी थे वीरों के सरदार जी। राजगुरु सुखदेव सरीखे थे जीपी कटियार जी।। पावन है बिल्हौर हमारा पावन अपनी खजुरी वीर प्रसूता धरा जहाँ की है धरती की धूरी कितने वीर यहाँ जन्मे हैं कोई इससे बुझे महादीन थे सत्तावन में अंग्रेजों से जूझे अपने गया प्रसाद इन्ही घर आये बन उजियार जी आज़ादी के हित  फहराई ऐसी एक पताका बम्ब बनाकर दिया भगत को ऐसा करो धमाका जो गूँजें उस इंक़लाब से लन्दन तक थर्राये अविजित अंग्रेजी शासन की चूलें तक हिल जाएं किया देश की आज़ादी का स्वर्णिम पथ तैयार जी अंग्रेजी जेलों में थे सत्ताइस साल बिताए सही यातना किंतु न अपने मुख पर उफ़ तक लाये वीर शिवा की संतानें कब अरि सम्मुख झुकती हैं वीरों की गति पाकर अंतिम मंजिल ही रुकती है उनकी स्मृति के वाहकहैं अपने क्रान्ति कुमार जी
 तुम भी हमको कहाँ समझते हो। जाने किसकी जुबाँ समझते हो।। क्या नज़र है कि तुम हमें जुगनू ग़ैर को कहकशाँ समझते हो।। अब ये आलम है वज्मे-यारब में यार को खामखाँ समझते हो।। ज़ख्म दिल के कुरेदने वाले तुम किसे नातवाँ समझते हो।। यूँ भी दुनिया सरायफ़ानी है हैफ़ इसको मकां समझते हो।। हम हैं मशरूफ़ घर गिरस्ती में और तुम दूरियाँ समझते हो।। वो सराबां तो ख़ुद भी तिशना है तुम जिसे आबदां समझते हो।। सुरेश साहनी,कानपुर
 बारिशों में भी सुलग पड़ता हूँ। नींद आती है कि जग पड़ता हूँ।। अजनबीपन है तेरी दुनिया में क्यों मै अपनों में अलग पड़ता हूँ।। पाँव के कांटे निकाले जिसके वो ये कहता है कि पग पड़ता हूँ।। क्यों दबाते हैं ये कमज़र्फ मुझे क्या मैं कमजोर सी रग पड़ता हूँ।। मुझको ग़ैरों से कोई खौफ़ नहीं हर किसी से गले लग पड़ता हूँ।। सुरेश साहनी, कानपुर
 एक अदद मीत के लिए तरसे। उम्र भर प्रीत के लिए तरसे।। जिस तरह डूब कर ख़यालों में एक कवि गीत के लिये तरसे।। इस क़दर शोर था रवायत में कान संगीत के लिए तरसे।। हार में जीत है मुहब्बत की हार कर जीत के लिए तरसे।। दिल के सौदे में जान देने की वारुणी रीत के लिए तरसे।। मन को मथता है मन्मथी मौसम श्याम नवनीत के लिए तरसे।। वो बदलता है रोज़ रस्मे वफ़ा  हम महज़ रीत के लिए तरसे।। सुरेशसाहनी, कानपुर
 मैं कहाँ मैं हूँ नहीं सोचता हूँ हूँ नहीं है नहीं पर क्या करूँ किस तरह कह दूँ नहीं तुम मेरे दिल में रहो मैं कहीं झाँकूँ नहीं सबमुझे समझा रहे मैं अधिक सोचूं नहीं आप जितना सोचते हो नेक उतना हूँ नहीं धर्म क्या है क्या कहूँ जब धर्म पर मैं हूँ नहीं।। सुरेशसाहनी
 न सँवर सके न सुधर सके गए तुम तो हम भी गुज़र गए तेरे साथ जितना चले चले तेरे बाद जैसे ठहर गए।। तेरी तरह हम न बदल सके रहे जैसे वैसे  ही रह गये  तेरे साथ चलना था दो कदम तेरे बाद थम के ही रह गये कभी मंज़िलों ने भुला दिया कभी छोड़ राहगुज़र गए।। न सँवर...... तुम्हें देखना है तो देख लो यहीं पास अपनी मज़ार है दो घड़ी सुकून से बैठ लो वो ख़मोशियों का दयार है फ़क़त इसलिए कि पता रहे जो अदीब थे वो किधर गए।।न सँवर...... यहाँ आके आँखें न नम करो तुम्हें किसने बोला कि ग़म करो जिसे प्यार था वो चला गया तो क्यों पत्थरों को सनम करो जो असीर थे वो नहीं रहे तेरे हुस्न के भी असर गए।।न सँवर......
 दैरोहरम को छोड़ के आ मैक़दे चलें। हर ग़म से मुँह को मोड़ के आ मैक़दे चलें।। जन्नत में भी शराब मिलेगी तो क्या बुरा तौबा को फिर से तोड़ के आ मैक़दे चलें।।
 ज़िंदा रहना सीख रहा हूँ। कुछ ना कहना  सीख रहा हूँ।। अवशेषों सा धीरे धीरे मन से ढहना सीख रहा हूँ।। व्यर्थ किसी से आशा रखना अपनेपन का भाव व्यर्थ है स्वार्थ निहित है सबके अपने सम्बन्धों का मूल अर्थ है बहुत सहे आरोप किन्तु अब  स्वयं उलहना सीख रहा हूँ।। चाँदी के चम्मच वालों को घर बैठे मिलती है दीक्षा किंतु समर्पित हृदय दीन की ली जाती है नित्य परीक्षा अविश्वासमय सम्बन्धों में नित नित दहना सीख रहा हूँ।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 मुझे बहर से बाहर  बोला दुनिया ने। बस भाटों को शायर  बोला दुनिया ने।। जो आँखों में धूल झोंकना सीख गया उसको ही बाज़ीगर बोला दुनिया ने।। जो लाशों पर चलकर दिल्ली पहुँचा है उसको कहाँ गुनहगर बोला दुनिया ने।। जिसके ढाई आखर दुनिया पढ़ती है उसको निपट निरक्षर बोला दुनिया ने।। कुछ तो बात रही होगी उस सूरा में जो उनको दीदावर बोला दुनिया ने।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545142
 ख़ूब घूमे कहाँ नहीं पहुँचे। सिर्फ़ चाहा जहाँ नहीं पहुँचे।। फिर पहुंचना कहीं भी क्या मानी हम अगरचे वहाँ नहीं पहुँचे।। हम ज़मीं पर तो ख़ुश ख़याल रहे क्या हुआ आसमां नहीं पहुँचे।।
 हूक सी दिल मे उठा करती रही। जब कमी तेरी खला करती रही।। हर नज़र खुदगर्ज है यह देखकर जीस्त ख़ुद को आईना करती रही।। हुस्न को फुर्सत कहाँ थी ध्यान दे आशिक़ी नाहक वफ़ा करती रही।।   हाल उन बेटों ने पूछा ही कहाँ माँ मगर फिर भी दुआ करती रही।।   तंज, फ़िकरे हिर्स नज़रों की चुभन बेबसी क्या क्या सहा करती रही।। क्या पता था है मुदावा मौत में ज़िन्दगी कितनी  दवा करती रही।। ग़म हैं लाफानी तेरे यह सोचकर ज़िन्दगी ख़ुद पर हँसा करती रही।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 आग पानी में हरदम लगाते रहे। यूँ लगी अपने दिल की बुझाते रहे।। वो ही  ख़ामोशियों से सताते रहे। उम्र भर हम जिसे गुनगुनाते रहे।। ख़ूब वादे किये ख़ूब आते रहे। एक हम थे दिलो जां लुटाते रहे।। कोई झूठी तसल्ली भी देता तो क्यों हालेदिल हम बुतों को सुनाते रहे।। कौन खाता तरस या पिघलता तो क्यों अश्क हम पत्थरों पर बहाते रहे।। साहनी सुरेश कानपुर 9451545132
 यूँ भी आतिश पनाह होना है। एक दिन सब तबाह होना है।। हुस्न काजल की कोठरी ठहरा साफ दामन सियाह होना है।। एक दिन जब ख़ुदा नवाजेगा और घर ख़ानक़ाह होना है।।
 वापसी का कोई रास्ता ही न था। लौटते भी कहाँ कुछ पता ही न था।। सब असासे रहे मर्ग के वास्ते ज़िन्दगी के लिए कुछ बचा ही न था।।🤗
 वो कह रहा है वो भी मेरा हमख्याल है। कैसे बताऊँ ये भी कोई उसकी चाल है।। मुझको कोई कमाल तो दिखता नही  मगर कहते हैं लोग आपकी गज़लें कमाल हैं।।
 उसके दीद की ख़्वाहिश भी है। और उसी से रंजिश भी है।। शायद वो तफ़रीह पे आयें बागों में आराइश भी है।। कुछ अपना भी दिल कहता है कुछ उसकी फरमाइश भी है।। रुसवाई का डर है लेकिन  लाज़िम आज नुमाइश भी है।। इश्क़ नहीं है इतना आसां इन राहों में लग्ज़िश भी है।। है इज़हार ज़रूरी इसमें और ज़ुबाँ पर बन्दिश भी है।। वो सुरेश भी आशिक है क्या वो तो अहले-दानिश भी है।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 एक तरफ हैं छोटे मोटे सपने पाले लोग। एक तरफ हैं ख़्वाब लूट ले जाने वाले लोग।। एक तरफ हैं सीधे सादे भोले भाले लोग।। एक तरफ हैं घात लगाए गड़बड़झाले लोग।।  धूसर तन की उजले मन की जनता एक तरफ एक तरफ हैं श्वेत वसन धर मन के काले लोग।। बूट पहन पर कालीनों पर दर्प उगलते झुण्ड इधर सड़क पर खार चूमते पहने छाले लोग।। दिन भर ख़ट कर एक तरफ मजदूरी को तरसे एक तरफ हैं देश लूटते बैठे ठाले लोग।। वतन बेचते नेताओं की महफ़िल उधर सजे इधर मुल्क़ पर मिटते रहते हैं मतवाले लोग।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 सचमुच आईना टूटा है। या कोई सपना टूटा है।।  हीर कोई मजबूर हुई क्या या कोई राँझा टूटा है।। नग़में झरतें हैं अश्कों में क्या कोई इतना टूटा है।। दुश्मन हैं तो भी अपने हैं मत कहना रिश्ता टूटा है।। आ सकते हो सहन समझकर दिल का दरवाजा टूटा है।। ख़ूब मियादेग़म से उबरे अब जाकर पिंजरा टूटा है।। मुश्किल ही है फिर जुड़ पाये वो किरचा किरचा टूटा है।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 उसे ही मिल गयी है रहनुमाई। शहर में आग जिसने थी लगाई।। समझ लीजै वो नेता बन गया है सभासद है अभी पहले था भाई।। किसे है फ़िक़्र आख़िर कौन था वो बुझी तो अब किसी ने भी बुझाई।। हमारी सिम्त होंगी तीन अंगुली किसी पर एक अंगुली जो उठायी।। चलो अखबार पढ़ कर देखते हैं किसी कोने में तो होगी सच्चाई।। इलेक्शन में कहाँ का भाईचारा बनाते हैं किसी चारे को भाई।। सदा का कोई मतलब ही नहीं है अगर ख़ामोश है उसकी ख़ुदाई।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545432