जीनते बाजार समझा है मुझे।

क्या कभी इक बार समझा है मुझे।।


उसकी आंखों में हवस है और वो

कह रहा है प्यार समझा है मुझे।।


पूछना तफसील से हाले शहर

क्या फकत अख़बार समझा है मुझे।।


कर गया जिक्रे मदावा इस तरह

क्या कोई बीमार समझा है मुझे।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा