और हम खुद पे ध्यान कैसे दें।

अपने हक़ में बयान कैसे दें।।


पास मेरे ज़मीन दो गज है

आपको आसमान कैसे दें।।


गांव की सोच जातिवादी है

उनको बेहतर प्रधान कैसे दें।।


इसमें मेरी ही रूह बसती है

तुमको दिल का मकान कैसे दें।।


 एक चंपत हमें सिखाता है

ठीक से इम्तेहान कैसे दें।।


वो भला है मगर पराया है

उसको दल की कमान कैसे दें।।


भेड़िए गिद्ध बाज तकते हैं

बेटियों को उड़ान कैसे दें।।


ये अमीरों के हक से मुखलिफ है

सबको शिक्षा समान कैसे दें।।


साहनी ख़ुद की भी नहीं सुनते

उल जुलूलों पे कान कैसे दें।।


सुरेश साहनी कानपुर

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