जब हमारे देश की जनता  हुकूमत के सामने सर उठाती है तो कष्ट होता है।जबकि इसी जनता के लिए लगभग चौहत्तर वर्षों में हुकूमत सैकड़ों लाख करोड़ के कर्ज ले चुकी है। आज विकास के  हर क्षेत्र में हम विश्व का पीछा करते नज़र आते हैं। दुनिया भर के देश हमसे डर डर कर के आगे भाग रहे हैं।यहां तक कि बंग्लादेश भी हमसे बराबरी करने की हिम्मत नहीं करता।हाँ पाकिस्तान कभी कभार हमसे पिछड़ेपन में बराबर आने की कोशिश कर लेता है।

इसका मूल कारण यही है कि यहां की जनता हुकूमत का आभार नहीं मानती। देश के बच्चे बच्चे के लिए सरकार ने चालीस से पचास लाख का कर्ज ले रखा है। यानी सरकार के उपकारों के बोझ तले बच्चे बूढ़े सभी दबें हुये हैं। यह सरकार का बड़प्पन है कि वो आप पर लड़े कर्ज के बोझ का व्याज नहीं लेती।

   किंतु यहाँ के लोग समझते ही नहीं। अभी एक नेता को मात्र विधायक/सांसद बनवा देने भर से वह नेता बड़े नेता का तीन चार साल के लिये ऋणी हो जाता है।बाकी एक दो साल वो पुनः टिकट की दावेदारी के लिए बचा के रखता है ताकि पुनः दावेदारी न बन पाने पर रूठने/धोखा देने का स्कोप बना रहे।

 अब देखिए कोरोना वैक्सीन के लिए एक सज्जन डॉक्टर का आभार व्यक्त कर रहे थे जबकि माननीय मुख्यमंत्री जी ने वैक्सीन लगवाने  के बाद माननीय मोदी जी को धन्यवाद दिया है , उनका आभार व्यक्त किया है। जबकि इस देश के लोग पिछले सात दशक से चेचक खसरा पोलियो और बीसीजी के राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के बावजूद कभी हुकूमत को धन्यवाद न दे सके हैं।

  अपितु इसके उलट कहीं किसान बनकर, कहीं व्यापारी बनकर तो कहीं कर्मचारियों के रूप में हुकूमत का विरोध किया करते हैं। जबकि यहाँ की गौरवशाली परम्परा रही है कि भले ही पेंशन के लिए याचिकाएं देनी पड़ी हों , भले ही माफीनामे देने पड़े हो ,लेकिन हुकूमत से बगावत का ख़याल भी कभी मन मे नहीं लाया गया। हमने अपने लोगों को कितना भी दबाया कुचला हो मगर हुकूमत की नाफरमानी सपने में नहीं करी। 

 यहाँ तक कि ,

              "रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल

              जो आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।।'

कहने वाले ग़ालिब चच्चा भी अंग्रेजों से पेंशन ही मांगते नज़र आते थे । बहादुर शाह जफर की तरह हुकूमत से बगावत की बेवकूफी नहीं की।नहीं तो चच्चा भी ख़ाके-वतन से महरूम रहते।

        अब अवध की जनता को क्या कहें।आख़िर प्रजा की तरह रहने में क्या दिक्कत है । ऐसे वक्त में रामराज्य के विरुद्ध खड़ी हो गयी जब रामजी पुनः अवध में विराजित हुए हैं।ऐसा प्रतीत होता है कि विद्रोह  अवध वालो के खून में समा गया है। पहली बार धोबी ने सिर उठाया था।दूसरी बार कोई और। लेकिन इस बार तो हद हो गयी।साधू सन्त भी विरोध में आ गये।और तो और इस बार कोई अवधेश ही पधार गये। बाबा ने अवध का अंधेरा दूर करने के लिये करोड़ों चिराग रोशन करवायें। गिनीज बुक में कई कई बार अयोध्या नगरी का नाम लिखवाया। लेकिन क्या कहा जाये अवध वालों की समझदानी को। अभी भी शिक्षा और रोज़गार के पीछे पागल हो रहे हैं। अगर शिक्षा इतना महत्व रखती तो  उच्च शिक्षा प्राप्त आईएएस अधिकारी अँगूठा टेक शिक्षा मंत्री का सचिव नहीं बनता।

 यह तो हमारे लिये सौभाग्य की बात है कि आज हमारी साढ़े नौ करोड़ जनसंख्या वाले राज्य के  मुखिया ने इस प्रदेश की जनता को मोदी जी का कृतज्ञ बनाकर प्रदेश को कृतघ्न होने से बचा लिया है। साथ ही एक बड़ा सन्देश दिया है कि राजतंत्र में कृतज्ञता कितना मायने रखती है।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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