फिर सिफर निकला मुक़द्दर में मुक़द्दर में।
फिर नदी डूबी समंदर में समंदर में।।
क्या ढहा मुझमें कोई दिल या
खण्डहर टूटा कोई घर में कोई घर मे।।
कोई कांटा चुभ गया तो क्या
क्यों चुभे हैं फूल बिस्तर में बिस्तर में।।
फिर सिफर निकला मुक़द्दर में मुक़द्दर में।
फिर नदी डूबी समंदर में समंदर में।।
क्या ढहा मुझमें कोई दिल या
खण्डहर टूटा कोई घर में कोई घर मे।।
कोई कांटा चुभ गया तो क्या
क्यों चुभे हैं फूल बिस्तर में बिस्तर में।।
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