मुझे बिखरे हुए अरसा हुआ है।

मगर लगता है कल का वाकया है।।

मुझे हँसते हुए देखा है तुमने

तुम्हे शायद कोई धोखा हुआ है।।

मुझे महबूब तुमने ही कहा था

बेवफा नाम भी तुमने दिया है।।

वो पत्थर है यही काबिलियत है

वो बेदिल है तभी तो देवता है।।

मेरा हमदर्द भी उनकी नजर में

बेगैरत है , काफिर है , बुरा है।।

सूरेश साहनी

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