मन कुछ हारा हारा सा है।

बेघर सा बंजारा सा है।।

कुछ  हलचल है उस ओर हुई 

टूटा कोई तारा सा है।।

जो आज गया है छोड़ मुझे

कोई अपना प्यारा सा है।।

इतना तो ख़ास नहीं है वो

फिर भी कितना सारा सा है।।

मन चंचल है सब कहते हैं

क्या दिल भी आवारा सा है।।

इतना मीठापन है उसमें

फिर रिश्ता क्यों खारा सा है।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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