जुल्फों के साये में तेरे इक शाम तो मिले।

इस इश्के-नामुराद को अंजाम तो मिले।।

दिन रात चल रहा है ज़माने के साथ साथ

सांसों का कारवां रुके आराम तो मिले।।

ये रात दिन की फ़िक्र कटे भी तो तरह

तेरा ग़म जहेनसीब कोई काम तो मिले।।

दीवानगी में दर्द -दवा सब कुबूल है

तेरी तरफ से कोई भी इनाम तो मिले।।

रुसवाईयाँ कुबूल है गर तेरा साथ हो

बदनामियों के बीच कोई नाम तो मिले।।

Suresh Sahani

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

अपरिभाषित

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है