कुछ वज़ह हो तो अदावत कर लें।

और किस बात पे हुज्जत कर लें।।

फिर कभी तुमसे मिलें या ना मिले

आज जी भर के शिकायत कर लें।।

आ ही जाती हो मेरे ख्वाबों में

लाख पलकों से बगावत कर लें।।

रंज़ो-ग़म यूँ भी बहुत हैं जबकि

क्यूँ ये सोचा कि मुहब्बत कर लें।।

हम ही अहमक थे कि दिल दे बैठे

तुम ने सोचा कि शरारत कर लें।।

अब भी उल्फ़त में मेरी जां तुमसे

तुम जो चाहो तो किताबत कर लें। 

सुरेश साहनी, कानपुर

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