मुझमें सदा जगी रहती है उस कवि की अभिलाषा।

जिसे पसंद नहीं आती है राजनीति की भाषा।

करता हूँ सर्वस्व निछावर कवि की सारंगी पर

कम भाता है  राजनीति का चारण ढोल तमाशा।।

सुरेश साहनी ,कानपुर

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