अश्कों ने अन्तस् जलथल कर रक्खा है।

भावों ने व्याकुल बेकल कर रक्खा  है।।


कुछ कुछ दीवानों जैसा दिखता भी हूँ

कुछ अपनों ने भी पागल कर रक्खा  है।।


क़त्ल का हर सामां तो तुम ख़ुद रखते हो

यार तुम्हें किसने घायल कर रक्खा  है।।


यार हटा लो जुल्फ घनेरी चेहरे से

चाँद पे तुमने क्यों बादल कर रक्खा  है।।


तुम सुरेश बाबुल  घर कैसे जाओगे

इतना मटमैला आँचल कर रक्खा  है।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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