यह तय है जब मैं न रहूँगा

मेरे गीत न गाओगे तुम।

लेकिन कल जब तुम न रहोगे

क्या ख़ुद को सुन पाओगे तुम।।


जो वरिष्ठ हैं उनको सुन लो

पढ़ लो उनकी लिखी किताबें

आने वाली पीढ़ी के भी

हाथों में दो सही किताबें


वरना अपनों की स्मृतियों

से ओझल हो जाओगे तुम।।


बेटा बेशक़ तुम्हें सहेजे

पोता कुछ कुछ याद करेगा

लेकिन कभी किताब तुम्हारी

पढ़ न समय बरबाद करेगा


रोप रहे हो कीकर प्यारे

आम  कहाँ से खाओगे तुम।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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