नहीं है यार होता यार तो भी।
न होती गलतियां स्वीकार तो भी।।
बहकते हर क़दम को रोक लीजै
न हो अधिकार हो अधिकार तो भी।।
किसी से भी कभी नफ़रत न करिए
भले उस से नहीं हो प्यार तो भी।।
क़ज़ा ले जायेगी जब चाह लेगी
बशर हरगिज़ न हो तैयार तो भी।।
नहीं है प्रेम तो वह घर नहीं है
बनी हो छत दरो-दीवार तो भी।।
सुरेश साहनी कानपुर
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