आदमी को खल रहा है आदमी।

जाने  कैसे पल  रहा है आदमी।।


इक उनींदी आँख में सोया हुआ

ख़्वाब लेकर चल रहा है आदमी।।


जानवर से भी हैं हिंसक हरकतें

क्या कभी जंगल  रहा है आदमी।।

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