जब तुम ही कह रहे हो वो प्यासा लगा तुम्हें।
फिर कैसे बोलते हो वो दरिया लगा तुम्हें।।
ऐसा लगा तुम्हें कभी वैसा लगा तुम्हें।
क़िरदार से ये साहनी कैसा लगा तुम्हें।।
कतरा सही मैं फिर भी समुन्दर की जात हूँ
किस तौर किस लिहाज से तिशना लगा तुम्हें।।
ग़म थे तुम्हारी याद के मन्ज़र तमाम थे
बोलो मैं किस निगाह से तन्हा लगा तुम्हें।।
तुम इश्क़ में रहे हो कहो कैसे मान लें
औरों का इश्क़ जबकि तमाशा लगा तुम्हें।।
सहरा-ए-कर्बला है ये दुनिया मेरे लिए
क्या मैं कभी हुसैन का सदका लगा तुम्हें।।
सुरेश साहनी , कानपुर
9451545132
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