लाख मुझको नदी समझता था

पर मिरी तिश्नगी समझता था।।


दिल उसे देवता न कह पाया

वो मुझे आदमी समझता था।।


दिल पे जो ज़ख़्म दे गया इतने

इक वही दर्द भी समझता था।।


दरअसल नूर था उसी दर पर

मैं जहाँ तीरगी समझता था।।


आशना है अज़ल से वो मेरा

और मैं अजनबी समझता था।।


उफ़ वो गुफ्तारियाँ निगाहों की

मैं उसे ख़ामुशी समझता था।।


हाँ बहुत बाद में कहा उसने

इक उसे साहनी समझता था।।


सुरेश साहनी अदीब

9451545132

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