ज़िन्दगी जब मकान छोड़ेगी।
क्या कोई भी निशान छोड़ेगी।।
फिर कोई भी ना रह सके उसमें
करके ये इत्मिनान छोड़ेगी।।
सुख सुकूँ सब तो छीन लेती है
क्यों वो रत्ती सी जान छोड़ेगी।।
क्या अना इस क़दर ज़रूरी है
ज़िन्दगी कब गुमान छोड़ेगी।।
ला मकां का नहीं पता कोई
पर तुझे लामकान छोड़ेगी।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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