गो क़दम देखभाल कर रखते
दिल कहाँ तक सम्हाल का4 रखते
आख़िरी सांस की दुहाई दी
क्या कलेजा निकाल कर रखते
कोई सुनता तो हम सदाओं को
आसमां तक उछाल कर रखते
ज़िन्दगी दे रही थी जब धोखे
मौत को खाक़ टाल कर रखते
फ़ितरते-हुस्न जानते तब क्यों
इश्क़ का रोग पाल कर रखते
नेकियाँ पुल सिरात पर मिलती
हम जो दरिया में डाल कर रखते
साहनी मयकदे में आता तो
दिल के शीशे में ढाल कर रखते
साहनी सुरेश कानपुर
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